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    प्रस्तावना

    भारत में सैनिक कल्याण और पुनर्वास का इतिहास

    भारतीय सैनिक बोर्ड की स्थापना 07 सितंबर 1919 को प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद की गई थी। इस बोर्ड का उद्देश्य सेवानिवृत्त, दिवंगत और विकलांग सैनिकों तथा उनके आश्रितों के कल्याण और पुनर्वास के संबंध में सरकार को सलाह देना था। भारत की स्वतंत्रता के बाद, इस बोर्ड का नाम बदलकर “भारतीय सैनिक, नाविक और वायुसैनिक बोर्ड” कर दिया गया। 1975 में, इसका नाम फिर से बदलकर “केंद्रीय सैनिक बोर्ड” कर दिया गया, जो एक संवैधानिक बोर्ड है। यह बोर्ड वर्तमान में रक्षा मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और भारत की सशस्त्र सेनाओं में सेवारत सेवानिवृत्त सैनिकों और उनके आश्रितों के कल्याण और पुनर्वास में योगदान देता है।

    सेवानिवृत्त सैनिकों और उनके आश्रितों के पुनर्वास और कल्याण के महत्व को समझते हुए, तत्कालीन सरकार ने 22 सितंबर 2004 को रक्षा मंत्रालय स्तर पर “पूर्व सैनिक कल्याण विभाग” की स्थापना की। हालांकि सेवानिवृत्त सैनिकों और उनके आश्रितों के कल्याण की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों दोनों पर है, लेकिन अधिकांश जिम्मेदारियां और उनके मुद्दों के समाधान राज्य सरकार द्वारा किए जाते हैं।

    इसलिए, “राज्य सैनिक कल्याण बोर्ड” का गठन प्रत्येक राज्य में राज्य सरकार को सलाह देने के लिए किया गया है। सैनिक कल्याण से संबंधित सभी कार्य जिला सैनिक कल्याण और पुनर्वास कार्यालयों के माध्यम से किए जाते हैं। जिला स्तर पर, एक “जिला सैनिक बोर्ड” का गठन जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में सलाह देने के लिए किया गया है। उत्तराखंड में 13 जिलों में कुल 16 जिला सैनिक कल्याण कार्यालय हैं।